देसी गायों की डेयरी शुरू करने के लिए 5 सर्वोत्तम नस्लें
देसी गायों का डेयरी फॉर्म शुरू करने के लिए गायों की नस्लों का चुनाव उसका उस क्षेत्र के बाजार की जरूरत,भौगोलिक क्षेत्र और जलवायु के आधार पर किया जाना चाहिए.
शुरू करें देसी नस्ल की गायों का डेयरी फॉर्म –
भारतवर्ष में देसी गायों की विभिन्न नस्लें पाई जाती हैं. लेकिन कमर्शियल डेयरी फॉर्म शुरू करने के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित नस्लों की गायों का चुनाव किया जाता है, इनमें से प्रमुख हैं –
1 .साहिवाल
2 . गिर
3 . रेड या लाल सिंधी
4 . राठी
5 . थारपारकर
साहीवाल नस्ल की गाय-
साहीवाल नस्ल की गाय की उत्पत्ति का संबंध पाकिस्तान के साहिवाल जिले से है। साहीवाल नस्ल देसी गायों का डेयरी फार्म करने के लिए काफी अच्छी मानी जाती है.
साहीवाल गाय भूरे लाल या पीले लाल रंग की ढीली त्वचा वाली गाय होती हैं. इस गाय का शरीर सघन एवं सममित आकार का होता है होता है सिर छोटा एवं गोल होता है. इस गाय के सींग छोटे और कभी-कभी ढीले प्रकार के भी होते हैं. साहीवाल गायों में गल कंबल बहुत भारी होता है एवं गर्दन की नीचे से शुरू होता हुआ साहिवाल गाय की नाभि या अयन तक पहुंच जाता है. साहीवाल गायों की पीठ पर बड़ा कूबड़ पाया जाता है।
साहीवाल गाय पंजाब के फाजिल्का, फिरोजपुर जिले के साथ-साथ गंगानगर जिले के आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती हैं.
साहीवाल गाय कमर्शियल डेयरी फार्म के लिए इसलिए भी अच्छी मानी जाती है क्योंकि यह गाय मौसम के तापमान के उतार-चढ़ाव को आसानी से सहन कर लेती है और गर्मी व सर्दी के हिसाब से अपने आप को अनुकूलित कर लेती है.
अपने 10 महीने के दुग्ध काल में सामान्य स्थिति में साहीवाल गाय 2000 से 2500 किलोग्राम दूध का उत्पादन करती हैं। विशेष प्रबंधन परिस्थितियों में यह उत्पादन 2500 से लेकर 3500 या 4000 किलोग्राम तक भी पहुंच जाता है.
गिर नस्ल की गाय –
भौगोलिक रूप से गिर नस्ल की गाय की उत्पत्ति का स्थान गुजरात के गिर जंगल के क्षेत्र को माना गया है.
गिर गाय की सबसे शुद्ध प्रकार की नस्लें दक्षिणी काठियावाड़ के जूनागढ़ क्षेत्र में पाई जाती हैं. इसलिए गिर गायों को काठियावाड़ी नस्ल की गाय भी कहा जाता है.
गिर नस्ल गुजरात के अधिकांश जिलों में पाई जाती है एवं राजस्थान के भी कुछ जिलों में इस गाय को डेयरी फार्मिंग के लिए उपयोग में लाया जाता है.
गिर गायों का रंग लाल होता है लेकिन कभी-कभी इन नस्ल की गायों में भूरे या सफेद रंग के धब्बे भी पाए जाते हैं
गिर नस्ल की गाय का माथा चौड़ा और उभरा हुआ होता है जो कि गाय को तेज धूप से बचाने में मदद करता है.
इस नस्ल की गायों के सींग लंबे और पीछे की ओर घुमावदार आकृति लिए होते हैं,
गिर गायों के का विशेष पहचान लिए होते हैं. इन गायों के कान सीगो के आधार से से शुरू होते हुए नीचे की तरफ लटके हुए पत्ते नुमा और लंबे आकार के होते हैं।
यह गाय मध्यम आकार से लेकर बड़े आकार में 350 सौ से 550 किलोग्राम तक वजन की होती हैं।
गिर नस्ल की गाय प्रतिदिन 12 से 20 लीटर तक दूध देती हैं। अपने पूर्ण दुग्ध काल में 2500 से लेकर 3500 किलोग्राम तक दूध देती हैं।
इन नस्ल की गायों की प्रजनन क्षमता और दूध देने की क्षमता दोनों ही अच्छी मानी जाती है।
लाल सिंधी नस्ल की गाय-
लाल सिंधी नस्ल की उत्पत्ति पाकिस्तान के सिंध प्रांत से मानी गई है. गायों की यह नस्ल मुख्य रूप से पाकिस्तान के सिंध प्रांत में पाई जाती है. भारत में यह गाय पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उड़ीसा, तमिलनाडु, बिहार, केरल, कर्नाटक आदि राज्यों में भी पाई जाती है.
यह गाय गहरे लाल या लाल रंग की होती है. रंग के आधार पर यह साहीवाल नस्ल की गाय से मिलती-जुलती नजर आती है.
इस नस्ल की गाय का सिर चौड़ा होता है.
सिंधी गाय के सींग बाहर की तरफ जाते हुए ऊपर की तरफ मुड़े हुए होते हैं.
लाल सिंधी नस्ल की गाय में भी कूबड़ पाया जाता है. इस गाय की नस्ल का वजन भी 350 किलोग्राम से 550 किलोग्राम तक होता है.
इस इन गायों में भी अधिक तापमान के प्रति अनुकूलन पाया जाता है. गर्मी और सर्दी के तापमान के उतार-चढ़ाव को भी यह गाय आसानी से सहन कर लेती हैं. डेयरी फार्म के अच्छे प्रबंधन की परिस्थितियों में लाल सिंधी नस्ल की गाय अपने दुग्ध काल में 1800 से 2800 किलोग्राम तक दूध दे देती हैं. यह गाय 12 किलोग्राम से लेकर 20 किलोग्राम तक प्रतिदिन दूध देती है.
हालांकि हमारे देश में इस नस्ल की गायों की संख्या कम है लेकिन फिर भी कमर्शियल डेयरी फार्म करने के लिए इस गाय की नस्ल को बहुत पसंद किया जाता है।
राठी नस्ल की गाय –
राठी नस्ल की गाय राजस्थान के उत्तर पश्चिमी क्षेत्रों जैसलमेर, बीकानेर ,गंगानगर आदि भागों में अधिकांशत पाई जाती है.
राठी नस्ल की गाय, साहीवाल नस्ल, लाल सिंधी, थारपरकर और धनी नस्ल की गायों का मिश्रित रूप मानी जाती हैं.
राठी नस्ल की गाय सफेद धब्बों के साथ लाल, भूरे रंग की या काले रंग के साथ भी देखी जाती हैं. अच्छी नस्ल की गायों के सींग मध्यम आकार के होते हैं और बाहर की ओर, ऊपर और अंदर की तरफ घुमावदार होते हैं. राठी नस्ल की गायों में गल कंबल और कूबड़ पाए जाते हैं.
इस नस्ल की गाय अत्यधिक गर्म तापमान को और अत्यधिक ठंडे तापमान को भी आसानी से सहन कर लेती हैं.
राठी नस्ल की गाय अपने पूर्ण दूध काल में 2000 से 3000 किलोग्राम तक औसत रूप से दूध दे देती हैं. अच्छे प्रबंधन वाले कुछ विशेष फार्मो में राठी गाय 4000 से किलोग्राम से ज्यादा दूध भी अपने दुग्ध काल में देने की क्षमता रखती हैं. प्रतिदिन औसत रूप से 12 से लेकर 18 किलोग्राम और विशेष परिस्थितियों में यह 22 से 25 किलोग्राम तक भी प्रतिदिन दूध देती है.
कमर्शियल डेयरी फार्म करने के लिए राठी नस्ल की गायों को भी बहुत अधिक पसंद किया जाता है.
थारपारकर नस्ल की गाय –
थारपारकर नस्ल गायों की उत्पत्ति भौगोलिक रूप से थार रेगिस्तान के क्षेत्र से मानी जाती है. देश में यह गाय राजस्थान के जोधपुर जैसलमेर बाड़मेर जिले से लेकर गुजरात के कच्छ रण क्षेत्र तक पाई जाती है. किसी सफेद सिंधी या स्थानीय भाषा में से मालाणी नाम से भी जाना जाता है.
थारपारकर नस्ल की गाय सफेद या हल्के स्लेटी रंग की होती हैं सिर का आकार लंबा चौड़ा और उभरा हुआ होता है इन गायों के सींग मध्यम आकार के किनारे से तीखे होते हैं. नस्ल की गायों का कूबड़ भी अच्छे आकार का होता है. ऐसा माना जाता है कि थारपारकर नस्ल की गायों के विकास क्रम में कांकरेज, लाल सिंधी, गिर और नागौरी नस्लों का प्रभाव मिश्रित रूप रहा है।.
थारपरकर नस्ल की गाय सूखे चारे की कमी की स्थिति में भी छोटी वनस्पतियों पर भी जीवित रहते हुए दुग्ध उत्पादन कर सकती हैं. इस नस्ल की गायों में अत्यधिक गर्मी और ठंड को, शुष्क तापमान को भी सहन करने की अच्छी क्षमता होती है. इस नस्ल की गायों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अच्छी मानी जाती है.
थारपारकर नस्ल की गाय अपने पूर्ण दुग्ध काल में 1800 से लेकर 2400 किलोग्राम तक दूध देने की क्षमता रखते हैं। प्रबंधन की विशेष परिस्थितियों में की क्षमता और अधिक बढ़ सकती है.
गायों की देसी नस्ल की उत्पत्ति एवं विकास, उस क्षेत्र की जलवायु एवं पारिस्थितिक तंत्र के हिसाब से हुआ है. इसी वजह से आज के समय में घटित होने वाले जलवायु परिवर्तन और सर्दी गर्मी के तापमान के उतार-चढ़ाव को सहन करने के प्रति अधिक अनुकूलित होती हैं.
देसी नस्ल की गायों की रोग प्रतिरोधक क्षमता विदेशी एवं संकर नस्ल की गायों की तुलना में अधिक होती है. देसी नस्ल की गायों के रख – रखाव एवं प्रबंधन पर भी खर्चा विदेशी व संकर नस्ल की गायों की तुलना में कम लगता है. देश भर में देसी नस्ल की गायों के नस्ल सुधार एवं संवर्धन कार्यक्रम के लिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन के माध्यम से भी देसी नस्ल की गायों की आनुवांशिकी एवं उत्पादन क्षमता को बढ़ाने पर भी जोर दिया जा रहा है. देसी नस्ल की गायों के दूध को A2 मिल्क कहा जाता है. आजकल लोगों में देसी गायों के A2 मिल्क के साथ-साथ देसी गायों के दूध से बिलौना पद्धति से निर्मित देसी घी की डिमांड लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की वजह से लगातार बढ़ती जा रही है.
देसी नस्ल की गायों की उपरोक्त प्रभावी विशेषताओं की वजह से कमर्शियल स्तर पर देसी नस्ल की गायों का डेयरी फार्म खोलना लाभदायक माना गया है. डेयरी फार्म के व्यवसाय की शुरुआत करने वाले पशुपालक इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए उपरोक्त गायों की देसी नस्लों में से अपने लिए गायों की नस्ल का चुनाव कर सकते हैं।