हमें फॉलो करें

मैस्टाईटिस अथवा थनैला रोग से अपने दुधारू पशुओं का बचाव करें

मैस्टाइटिस या थनैला रोग होने की वजह से सोमेटिक सेल काउंट बढ़ जाते हैं और सेल काउंट बढ़ने की वजह बढ़ने की वजह से दूध की गुणवत्ता का स्तर गिर जाता है
Share
image showing mastitis in animals
अपने पशुओं को मैस्टाईटिस अथवा थनैला रोग से बचाने के लिए सभी तरह की सावधानियां अपनानी चाहिए.
हमें फॉलो करें

मैस्टाइटिस या थनैला रोग होने की वजह से सोमेटिक सेल काउंट बढ़ जाते हैं और सेल काउंट बढ़ने की वजह बढ़ने की वजह से दूध की गुणवत्ता का स्तर गिर जाता है

पशुओं में मैस्टाइटिस या थनैला रोग

हमारे देश भारत में डेयरी फार्मिंग इंडस्ट्री को मैस्टाइटिस या थनैला रोग की वजह से प्रतिवर्ष करीब 7500 करोड़ का रुपयों का नुकसान होता है.
मैस्टाइटिस या थनैला रोग में पशुओं के थनों में या उसके अयन में सूजन या दर्द होता है, जो कि रोग होने की स्थिति में लालिमा लिए होते है. इसे थनों का या अयन का इन्फ्लामेशन भी कहा जाता है . मैस्टाइटिस रोग में दूध अचानक या धीरे-धीरे कम होता जाता है एवं इसमें छिछड़े आने लगते हैं. दूध फटा फटा सा लगता है या कभी दूध में रक्त भी आने लगता है.

मैस्टाइटिस एवं सोमेटिक सेल काउंट :

मैस्टाइटिस या थनैला रोग होने की वजह से सोमेटिक सेल काउंट बढ़ जाते हैं और सेल काउंट बढ़ने की वजह बढ़ने की वजह से दूध की गुणवत्ता का स्तर गिर जाता है। दूध में पाए जाने वाली डब्ल्यूबीसी को सोमेटिक सेल्स कहा जाता है।.हमारे देश में दूध की गुणवत्ता का स्तर उस में पाई जाने वाली वसा या फैट की मात्रा से लगाया जाता है, जबकि अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के हिसाब से दूध में जितने सोमेटिक सेल काउंट कम होंगे उतना ही दूध को अच्छा माना जाता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उच्च स्तर के गुणवत्तापूर्ण दूध एवं दुग्ध उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सोमेटिक सेल काउंट की मात्रा को अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से कम रखना बहुत आवश्यक है . अंतरराष्ट्रीय मानकों के हिसाब से सोमेटिक सेल काउंट की मात्रा 1 लाख से 1.5 लाख प्रति मिली लीटर दूध से कम रखनी आवश्यक है। लेकिन कभी-कभी यह मात्रा पशु की नस्ल और उसकी लेक्टेशन की अवस्था से भी प्रभावित हो सकती है.

दूध देने वाले पशुओं के थनैला या मैस्टाइटिस रोग की वजह से डेयरी इंडस्ट्री के नुकसान को रोकने के लिए एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गुणवत्तापूर्ण दूध एवं दूध उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए पशुओं का मैस्टाइटिस रोग से रोकथाम एवं बचाव करना, रोग होने की स्थिति में सही उपचार होना अत्याधिक रूप से आवश्यक है.
मैस्टाइटिस या थनैला रोग सूक्ष्मजीवों की वजह से होता है इनमें से यह रोग मुख्य रूप से बैक्टीरिया या जीवाणुओं की वजह से होता है. यीस्ट-मोल्डस एवं थनों या अयन पर चोट लगने की वजह से या अन्य अज्ञात कारणों से भी थनैला रोग हो जाता है.

पशुओं को मैस्टाईटिस रोग की तरफ ले जाने वाले निम्नलिखित तीन प्रमुख कारक हैं –

  1. वातावरणीय कारक – अत्याधिक ठंडे, आद्र – नम एवं बरसात के मौसम में भी थनैला रोग होने की पशुओं में संभावना बढ़ जाती है क्योंकि इस तरह के वातावरण में सूक्ष्म जीवों की वृद्धि सघनता पूर्ण तरीके से होने से धनोरा आयन में संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है.
  1. शुद्ध एवं संतुलित पशु आहार की कमी होना – पशुओं को दिया जाने वाला पशु आहार संतुलित ना होना या शुद्ध ना होना भी मैस्टाइटिस के रोग को बढ़ावा देने वाला कारण बनता है. पशुओं को दिया जाने वाला पशु आहार अगर निम्न स्तर की गुणवत्ता का है और तो उसमें फंगस की या अफलाटॉक्सिन की मात्रा अधिक हो सकती है और यह मैस्टाइटिस रोग को बढ़ावा देगी. संतुलित पशु आहार ना होने की वजह से भी पशुओं के रूमैन की पीएच बदल जाती है जिससे पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है . किसी डेयरी फार्म में बार-बार पशुओं में मैस्टाइटिस होने की स्थिति में पशुओं को दिए जाने वाले आहार चारे एवं उस में मिलाए जाने वाले अवयवों की शुद्धता की जांच होना भी आवश्यक होता है.
  2. मैनेजमेंटल अथवा प्रबंधकीय है कारक – डेयरी फार्म में साफ-सफाई का ना होना, पशुओं के उठने बैठने की जगह में गंदगी का होना, पशुओं के दूध निकालने का तरीका सही ना होना, पशुओं के रखरखाव का तरीका सही ना होने से उनमें तनाव होना इत्यादि कारण भी पशुओं में मैस्टाइटिस या थनैला रोग को बढ़ावा देते हैं.

मैस्टाइटिस या थनैला रोग से पशुओं को बचाने के लिए रोकथाम के तरीके –

1 . पशुओं के उठने बैठने की जगह और फर्श साफ-सुथरा, सूखा रहना चाहिए और समय-समय पर वहां चूने का छिड़काव, अवश्य किया जाना चाहिए.


2 . पशुओं का दूध निकालने के लिए हाथों को अच्छे तरीके से धोकर उपयोग में लाना चाहिए और थनों एवं अयन को धोने के लिए पोटेशियम परमैंगनेट या लाल दवा युक्त साफ पानी का इस्तेमाल करना चाहिए.


3 . स्तनों से दूध निकालते समय अंगूठे की वजह फुल हैंड मेथड का या मिल्किंग मशीन का इस्तेमाल करना चाहिए ताकि दूध निकालते समय थनों को कोई चोट ना पहुंचे.


4 . पशुओं से उनके बच्चों को दूध पिलाते समय उनके थनों को या अयन को चोट से बचाने के लिए अत्याधिक सावधानी बरतनी चाहिए, अगर हो सके तो पशुओं के बच्चों को मिलकिंग बोतल से दूध पिलाना चाहिए.


5 . पशुओं का दूध निकालने के बाद थनों की स्वच्छता बनाए रखने के लिए टीट डिपर का इस्तेमाल या टीट डिपिंग सोल्यूशन का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए.


6 . पशुओं की टीट केनाल को संक्रमण से बचाने के लिए पशुओं को दाना या चारा, उनका दूध निकालने के बाद ही डालना चाहिए.


7 . पशुओं को पर्याप्त एवं संतुलित पशु आहार एवं चारा देना चाहिए। संतुलित पशु चारे में पशु आहार के सभी महत्वपूर्ण एवं पर्याप्त मात्रा में होने चाहिए.


8 . पशुओं को लेक्टेशन से ड्राई करते समय ड्राई कॉउ थेरेपी को अच्छी तरीके से उपयोग में लाया जाना जरूरी है.


9 . मैस्टाइटिस थनैला रोग होने की स्थिति में संक्रमित थन का दूध स्वस्थ थनों से दूध निकालने के बाद में ही निकालना चाहिए और उस दूध को इस्तेमाल में नहीं लाना चाहिए.

  1. थनैला रोग होने की स्थिति में संक्रमित पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए.

मैस्टाइटिस या थनैला रोग मुख्य रूप से सबक्लिनिकल, क्लिनिकल और क्रॉनिक मैस्टाइटिस के प्रकारों में में विभाजित किया गया है.सबक्लिनिकल मैस्टाइटिस की जांच करने के लिए पीएच स्ट्रिप टेस्ट, कैलिफोर्निया मैस्टाइटिस टेस्ट एवं फिल्टर पेपर टेस्ट को प्रयोग में लाया जाता है. क्लिनिकल मैस्टाइटिस का पता पशु के थनों में या अयन में मैस्टाइटिस के लक्षण प्रकट होने से हो जाता है. क्रॉनिक मैस्टाइटिस में पशुओं में बार-बार क्लिनिकल मैस्टाइटिस के लक्षण प्रकट होते हैं और कई बार नहीं भी होते हैं.


अपने पशुओं को, डेयरी व्यवसाय को थनैला या मैस्टाइटिस से बचाने के लिए सही समय पर सलाह एवं उपचार के लिए अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय से समय रहते हुए संपर्क करना चाहिए. उपरोक्त सभी बातों का ध्यान रखते हुए हम अपने पशुओं को मैस्टाइटिस या थनैला रोग से बचा सकते हैं और साथ ही अपने डेयरी व्यवसाय को दिन प्रतिदिन तरक्की की ओर ले जा जाते हुए अपने देश को आगे ले जा सकते हैं.

मैस्टाईटिस अथवा थनैला रोग से अपने दुधारू पशुओं का बचाव करें

मैस्टाईटिस अथवा थनैला रोग से अपने दुधारू पशुओं का बचाव करें

मैस्टाइटिस अथवा थनैला रोग होने की स्थिति में दूध में कौन सी सेल्स बढ़ जाती हैं ?

मैस्टाइटिस रोग होने की स्थिति में दूध में सोमेटिक से सेल्स की मात्रा बढ़ जाती है.

मैस्टाइटिस अथवा थनैला रोग कितने प्रकार में विभाजित किया जाता है ?

मैस्टाइटिस रोग मुख्य रूप से सब क्लीनिकल, क्लीनिकल और क्रॉनिक मैस्टाइटिस के प्रकारों में विभाजित किया जाता है.

पशुओं में सबक्लिनिकल मैस्टाइटिस की जांच करने के लिए क्या चीज उपयोग में लाई जाती है ?

सबक्लिनिकल मैस्टाइटिस की जांच करने के लिए पीएच स्ट्रिप टेस्ट, कैलिफोर्निया मैस्टाइटिस टेस्ट एवं फिल्टर पेपर टेस्ट को प्रयोग में लाया जाता है.

Share
Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Previous Post
kadaknath breed of poultry

कमाई का शानदार बिजनेस – कड़कनाथ मुर्गी पालन

Next Post
A person is shown with his pet dog

पालतू कुत्ते की कैसे करें देखभाल | Take care of your pet dog